Thursday, December 29, 2011

Ajowan



Ajowan or Ajawayan is a very common ingredient of Indian cuisine. It is found through out the length and breadth of the country and is commercially grown in a number of provinces.
The Plant:  Its plant is about 1 to 3 feet in height and its seeds are used in different medications in different systems of medicines like Yunani & Siddha etc. It is warm in nature and aids in digestion, cough, gastric ailments, pain and helminthiasis etc. It also relieves painand massage with ajowan oil brings relief in pain and swelling.
Different Names: It is known as Ajwayan in Hindi, Yavanika in Sanskrit, Ajamod in Gujarati, Oma in Kannada& Ajowan in English.
Uses:
In Stomach-ache: 

  • Ajowan and black salt if taken with water relieve gastric problems, indigestion and stomach-ache.
  • One TSP of ajowan seeds if taken daily aid in digestion.
  • In case of stomach-ache , grind ajowan seeds, black salt & dry ginger. taking this powder with water brings quick relief.
  • You can add a pinch of ajowan seeds to the dough for making chapathis/ paranthas. It is very tasty as well as easy to digest.
  • Taking half TSP of ajowan seeds along with butter milk at bed time helps in expulsion of helminths. In case of kids having helminths, you can give half TSP of these seeds 2-3 times in a day.

In cough & fever:

  • Chewing of 1 TSP ajowan seeds & drinking it down with warl water helps in cough.
  • Boil ajowan seeds in water. Drinking this water brings relief in flue.
  • Chewing one TSP of seeds and drinking it down with hot tea 2-3 times in a day brings relief in cold, cough, headache & joint pain.
  • If chewed along with betel leaves, they aid in cough & gastric problems.

In Skin Troubles:

  • Boil seeds in water. Washing and cleaning wounds, boils & exima etc with this water and application of grounded ajowan seeds to the affected parts brings relief under these situations.
  • It also acts like an antiseptic.
  • Consuming half TSP ajowan seeds with half cup water also aids in skin related problems.
In other Ailments:

  • Burn its seeds and powder them, now add rock salt and use this mix as a tooth powder for cleaning teeth. It aids in teeth and mouth related problems.
  • Application of grounded leaves on insect bites helps in reducing pain & swelling.
  • During pregnency if taken with jaggery, it helps in pain relief.
  • Taking butter milk with black salt & half TSP seeds daily after lunch helps in correcting gastric problems.

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Tuesday, December 13, 2011

गुडहल


गुडहल दिखने में सुन्दर एक बहुवर्षीय पौधा है,जो लगभग ४ से ८ फीट ऊंचा होता है.इसमें दो तरह की किस्में पाई जाती हैं जिनमें लाल तथा सफेद रंग के फूल लगते हैं जिनकी अपनी अलग अलग उपयोगिता है.इसके पत्ते चमकीले गहरे हरे रंग के होते हैं तथा इनके किनारे गुलाब के पत्तों की तरह कटे हुए होते हैं. यह प्रायः बागानों में अकेले अथवा हेजेस  बनाने में लगाया जाता है.गुड़हल का पौधा दिखने में सुन्दर होने साथ ही बेहद उपयोगी भी है तथा यह सारे भारत में पाया जाता है.
विभिन्न नाम:  इसे असमी  तथा बंगाली में जोबा, गुजराती में जसुवा, कन्नडा में दसवाल, कोंकणी में दासुन, मलयाली में चेम्बाराठी, संस्कृत में जपा तथा तमिल में सेम्परुथी तथा इंग्लिश में शू फ्लोवर एवं लेटिन में हिबिस्कस रोसा सिनेनसिस के नाम से जाना जाता है.
अधिकतर गुडहल के फूलों का उपयोग किया जाता है.
केश:
·         बालों के लिए गुडहल विशेष रूप से उपयोगी है.इसके फूलो को पीस कर बालों  में लगाने से वे बढ़ाते हैं तथा उन्हें पोषण मिलता है, गंजापन दूर होता है तथा सिर को शीतलता मिलती है.
·         इसके पत्ते भी बड़े गुणकारी होते हैं. इन्हें भी फूलों के साथ पीसकर १-२ घंटों के लिए बालों में लगाने से केश सम्बंधित समस्याएं दूर होती हैं.
·         इसके फूलों को पीसकर पावडर बना लें  तथा इसमे मेहंदी और हेयर  पैक में मिलाकर लगाने से भी बाल काले, चमकीले तथा लम्बे होते हैं.
मुंह के छाले:
·         इसके साफ फूलों को चबाने से मुहं के छालों में आराम मिलता है.
स्मरण शक्ति:
·         गुडहल के पत्ते तथा फूलों को सुखाकर पीस लें. इस पावडर की एक चम्मच मात्रा को एक चम्मच मिश्री के साथ पानी से लेते रहने से स्मरण शक्ति तथा स्नायुविक शक्ति बढाती है.
दर्द तथा सूजन:
·         इसके पत्तों को पानी के साथ पीसकर इस लेप को सूजन पर लगाने से दर्द तथा सूजन में आराम मिलता है.
अन्य रोगों में:
·         गुडहल के फूलों को सुखाकर बनाया गया पावडर दूध के साथ एक एक चम्मच लेते रहने से रक्त की कमी दूर होती है.
·         वात, खांसी व कफ में भी इन फूलों को पीसकर  एक एक चम्मच सुबह- शाम लेते रहने से आराम मिलता है.
·         इसका गुलकंद व शरबत बनाकर लेने से भी कई रोगों जैसे लू लगना, चक्कर आना, बेहोशी तथा सर दर्द इत्यादि में फायदा होता है.

Thursday, December 1, 2011

सेहत भरी है सौंफ


सौंफ की खेती पूरे देश में की जाती है. यह लगभग सभी जगह पाई जाती है तथा प्राचीन काल से ही इसका उपयोग रसोई में तथा औषधि के रूप में किया जाता रहा है. इसका पौधा खुशबूदार होता है.
स्वाद में मीठी होने के साथ इसकी तासीर ठंडी होती है. सौंफ में कैल्शियम,  आयरन, सोडियम तथा पोटेशियम जैसे अहम् तत्व होते हैं. यह आंतों की मरोड़ को तथा उलटी को शांत करने वाली औषधि है. भोजन के बाद रोजाना  सौंफ लेने से कोलेस्ट्रोल काबू में रहता है. यूनानी दवाओं में सौंफ की बेहद सिफारिश की जाती है.
सौंफ के विभिन्न नाम 
हिंदी में इसे सौंफ, संस्कृत में मिश्रेय या मधुरिका, गुजराती में वरियाली, कन्नड़ में सोंपू, तथा इंग्लिश में फेंनेल के नाम से जाना जाता है.
पाचन सम्बन्धी रोगों में प्रयोग 

  • सौंफ के बीजों से तेल निकाला जाता है. यह पेट के दर्द को दूर करने में सहायक होता है. 
  • सोते समय साफ पिसी सौंफ एक चम्मच पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है.
  •  इसे घी में भूनकर मिश्री के साथ सेवन करने से डायरिया रोग में लाभ होता है. भोजन के बाद सौंफ का प्रयोग बहुत फायदा करता है. 
  • मुंह की दुर्गन्ध, अपच तथा कब्ज को दूर करती है. इसके अलावा यह मुंह के छालों में आराम देती है तथा गर्मी के कारण होने वाले रोगों में फायदेमंद होती है. पिसी सौंफ और  काला नमक मिलाकर खाने से पेट दर्द में आराम होता है.
  • इसे भूनकर बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर पावडर बना लें. इसे आधा आधा चम्मच पानी के साथ लेते रहने से मरोड़, अपच और पेचिश में आराम मिलता है.
  • इसकी पतियाँ भी भूख मिटाने तथा पाचन क्रिया में मदद करती हैं. 
नेत्र ज्योति और यादाश्त में सहायक 

  • सौंफ और मिश्री(अथवा शक्कर) को बराबर मात्रा में मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से नेत्र ज्योति बढती है. नींद भी अच्छी आती है. 
  • गर्मियों में इससे बनी ठंडाई लेने से शरीर में शीतलता बनी रहती है. गर्मी से होने वाली बीमारियों में आराम मिलता है. दिमाग को शीतलता मिलती है. स्मरण शक्ति बढती है.
अन्य रोगों में प्रयोग 

  • सौंफ का प्रयोग कफ,खांसी तथा अस्थमा में लाभकारी है 
  • पिसी सौंफ को समान मात्रा में मिश्री के साथ सेवन करने से बवासीर रोग में आराम मिलता है.
  • यह कोलेस्ट्रोल कम करने में भी मदद करती है.
  • इसके प्रयोग से मासिक धर्म की अनियमितता दूर होती है.  

Tuesday, November 22, 2011

हेल्थ टिप



मसाला चाय में अन्य मसालों के साथ उपयोग की गयी छोटी इलाइची विशेष रूप से मानसिक तनाव ( depression  ) में फायदा देती है.


Cardamom used in Masala tea along with other spices is very useful in depression.

Tuesday, November 15, 2011

विभिन्न रोगों में फायदेमंद हैं दालचीनी और शहद


दालचीनी  एक सदापर्णी (Evergreen)  छोटा पेड़ है. इस पेड़ की सूखी पत्तियां तथा छाल को  पूरे विश्व में मसालों में उपयोग किया जाता है. इसकी छाल थोड़ी मोटी, चिकनी तथा हल्के या कुछ गहरे ब्राउन रंग की होती है. दालचीनी के लिए मोटी छाल के अन्दर की पतली छाल को निकालकर उसे सुखाकर बनाया जाता है. सूखने पर दालचीनी घुमावदार आकृति में बदल जाती है. इस पेड़ के विषय में प्राचीन काल से ही लगभग २७०० ईसा पूर्व से ही पता था.चीनी, रोमन तथा भारतीय इसके औषधीय गुणों से भलीभांति परिचित थे तथा इलाज में इसका उपयोग करते थे. इसे  रक्तशोधक तथा शक्तिवर्धक पावडर और काढ़े  के  रूप में उपयोग किया जाता है.  दक्षिण  भारत में  यह लगभग ५०० मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है. शहद तथा दालचीनी का मिक्सचर अधिकतर बीमारियों जैसे हार्ट डिसीज़ , कोलेस्ट्रोल, त्वचा रोग, सर्दी ज़ुकाम, पेट की बीमारियों आदि में बहुत लाभकारी होता है.


सर्दी जुकाम में दालचीनी: 

  • एक चम्मच शहद में ज़रा सा दालचीनी पाउडर  मिलाकर सुबह शाम लेने से खांसी-जुकाम में आराम मिलता है.
  • हल्के गर्म पानी में एक चुटकी दालचीनी पाउडर तथा एक चुटकी पिसी काली मिर्च मिलकर शहद में मिलाकर पीने से जुकाम तथा गले की खराश दूर होती है.
  • इसके पाउडर को थोड़े से पानी में मिलाकर पेस्ट बनाकर माथे पर लगाने से ठंडी हवा से होने वाले सिर दर्द में आराम मिलता है.

जोड़ों के दर्द में: 

  • हल्के गर्म पानी में इसके पाउडर और थोड़े से शहद को मिलाकर शरीर में दर्द वाले अंग पर लगाने और हलकी मालिश करने से फायदा मिलता है.
  • एक कप हल्के गर्म पानी में एक चम्मच शहद और आधा चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर  पीने से भी जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है.

त्वचारोगों में दालचीनी:

  • त्वचा में खाज और  खुजली होने पर दालचीनी पाउडर तथा शहद बराबर मात्रा में लेकर लगाने से लाभ होता है.
  • इसके पाउडर में थोडा सा नीबू का रस मिलाकर चेहरे पर  लगाने से कील मुंहासे दूर होते हैं.

अपच में दालचीनी : 

  • इसके प्रयोग से उलटी तथा दस्त में आराम होता है.
  • एक चम्मच शहद के साथ ज़रा से दालचीनी पाउडर को मिलाकर लेने से पेट दर्द और एसिडिटी में आराम मिलता है तथा भोजन आसानी से पच जाता है. 

अन्य रोगों में दालचीनी:
  • एक चम्मच शहद में ज़रा सा दालचीनी का पाउडर मिलाकर दांतों पर रोज़ दो-तीन बार  मलने से दांत दर्द में आराम मिलता है.
  • शहद के साथ ज़रा सा पाउडर मिलाकर लेते रहने से मानसिक तनाव में आराम मिलता है तथा स्मरण शक्ति भी तेज़ होती है.
  • दालचीनी का प्रयोग रक्त शर्करा तथा कोलेस्ट्रोल कम करने में सहायक होता है.
  • यह दूसरी बीमारियों जैसे अस्थमा तथा लकवा   में भी बहुत फायदा पहुंचती है.
  • मसाला चाय में अन्य मसालों जैसे तुलसी, अदरक,इलाइची', लवंग इत्यादि के साथ दालचीनी डालने से यह स्वाद के साथ साथ बहुत फायदा भी देती है.
गर्भवती स्त्रियों को दालचीनी का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
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Tuesday, November 8, 2011

औषधीय गुणों से भरपूर है हल्दी (Turmeric )



हल्दी हमारी रसोई में रोज़मर्रा में विभिन्न रूपों में उपयोग होने वाली अद्भुत वनस्पति है. यह एकवर्षीय पौधा है जो लगभग २ से ३ फीट ऊँचा होता है तथा एक एक फीट की चौड़ी पत्तियां होती हैं. बारिश के दिनों में इसके पीले रंग के फूल बड़े सुन्दर लगते हैं. ज़मीन के नीचे विकसित होने वाले कंद  से व्यवसायिक हल्दी बनायी जाती है.  इसका उल्लेख हमारे पुराने ग्रंथों में भी मिलता है तथा प्राचीनकाल से ही इसका उपयोग रसोई के अतिरिक्त आयुर्वेद और यूनानी औषधियों  में होता रहा है.


विभिन्न नाम:
हिंदी में हल्दी, संस्कृत में हरिद्र, गुजराती में हलदर, मराठी में हलद, कन्नड़ में अरिशिन, तथा लेटिन में करकुमा लोंगा (Curcuma longa) के नाम से इसे जाना जाता है. संस्कृत में इसको क्रिमिहना भी कहते हैं जिसका अर्थ है कीटाणुनाशक.


गुण: 
हल्दी रक्त को शुद्ध करने वाली तथा औषधीय गुणों से भरपूर होती है. यह घाव भरने वाली, चोट तथा सूजन के प्रभाव को दूर करने वाली तथा त्वचा के रंग को निखारने वाली होती है. औषधीय गुणों के कारण इसका उपयोग घरेलू इलाज के रूप में रोगों को दूर करने में किया जाता है.  बाहर से पीले रंग की दिखने वाली हल्दी शरीर में जाकर रक्त को शुद्ध तथा लाल रंग का बनाती  है अतः यह रक्तशोधक है.


त्वचा सम्बन्धी रोगों में हल्दी का उपयोग: 

  • हल्दी में पौष्टिक तेलों की  मात्रा होती है. इसी वजह से सूखी त्वचा चिकनी और मुलायम बनी रहती है. इसका तेल त्वचा के अन्दर जा कर उसे प्राकृतिक सौंदर्य देता है.चेहरे की झाइयों को हल्दी के प्रयोग से दूर किया जा सकता है. इसके लिए हल्दी का उबटन या हल्दी को शहद में मिलकर लगाने से फायदा होता है.
  • फोड़े फुंसी होने पर  हल्दी के तेल को  रुई से उन पर लगाने से आराम मिलता है.
  • दही में हल्दी तथा बादाम पीस कर लगाने से झुलसी हुई त्वचा में और जलन में लाभ होता है.
  • दाद या खाज होने पर कच्ची हल्दी का रस लगाने से आराम होता है.

श्वास सम्बन्धी रोगों में हल्दी का उपयोग:

  • सर्दी, जुकाम,खांसी व् दांत दर्द में हल्दी का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहने से राहत मिलती है.
  • हल्दी और शहद बराबर मात्रा में लेकर गोलियां बनालें, इन्हें चूसने से खांसी व्  कफ़ दूर होता है.
  • गरम पानी में हल्दी डालकर पीने से भी इन रोगों में आराम मिलता है.
  • सोते समय दूध में हल्दी डालकर गर्म करके सेवन करने से भी सर्दी, ज़ुकाम, गले की खराश आदि में आराम मिलता है.

चोट तथा मोच में हल्दी का उपयोग:

  • चोट, मोच व सूजन होने पर गरम दूध में हल्दी और थोडा सा गुड मिलकर पीने से तकलीफ में आराम मिलता है. तथा हलके गर्म तेल में पिसी हल्दी मिलकर चोट व सूजन पर लगाने से फायदा मिलता है.
  • चोट लगे अंग पर हल्दी की पुल्टिस को   हल्का  गर्म करके बांधने से दर्द और सूजन कम हो जाती है.

अन्य रोगों में हल्दी का प्रयोग:

  • अजवायन और हल्दी को  पीसकर और मिला कर मंजन की तरह प्रयोग करने से दांत साफ़ और मजबूत होजाते हैं. इस मंजन को लगाकर थोड़ा समय बाद कुल्ला करें तथा लार टपकने दें.
  • दांत में कीड़ा लग गया हो तथा उसमे दर्द होता हो तो हल्दी बारीक पीस कर दांत की खोखली जगह में भरने से आराम मिलता है.
  • शरीर में पित्ती उछलने तथा फुंसियाँ होने पर पिसी हल्दी को शहद के साथ मिलाकर खाने से लाभ मिलता है.
  • बर्र या बिच्छू के काटने पर तुरंत हल्दी में नींबू का रस मिलाकर काटे हुए अंग पर लेप करने से दर्द व विष का प्रभाव कम हो जाता है.

हल्दी के नियमित सेवन से अनेक बीमारियों को नष्ट करके यह मानव शरीर का कायाकल्प करदेती है.
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Monday, November 7, 2011

हेल्थ टिप



तुलसी की पत्तियां मानसिक तनाव  में  सहायक होती हैं. इसकी  ६-७ पत्तियां सुबह और शाम  लेने से मानसिक  तनाव में आराम होता है.

Holy Basil leaves play an important role in treatment of stress. Taking 6-7 leaves in morning and evening helps in preventing stress.

Friday, November 4, 2011

हेल्थ टिप


             
                  औरेंज और गुलाब तथा यलांग यलांग आयल को सूंघने से डिप्रेशन तथा मानसिक तनाव दूर होता है. इसी प्रकार गुलाब के फूल तथा ओरेंज को सूंघने से भी फायदा होता है.

                  Inhaling Orange, Rose or Ylang Ylang essential oil helps in insomnia, anxiety and depression. Smelling Rose flowers and Orange also brings you relief.

Wednesday, November 2, 2011

हेल्थ टिप


             नहाने से थोड़ी देर पहले हल्के गरम पानी में नीम की कुछ पत्तियां , देसी गुलाब की कुछ पंखुडियां और नीबू  या संतरे के छिलकों को डाल दें. २०-२५ मिनट  के बाद इस पानी से स्नान करने से त्वचा की कई रोगों से रक्षा होती है और शरीर में एक ताज़गी आ जाती है.

             
             Before taking bath in the morning soak orange/ lemon peels, neem leaves and rose petals in luke warm water and allow it to remain for 20-25 minutes. Taking bath with this water guards skin against a number of skin related ailments and also freshens it up.

Saturday, October 29, 2011

मेथी एक चमत्कारिक औषधि - पत्तियां गुणकारी, दाने फायदेमंद


इसके पत्ते संयुक्त तथा फूल छोटे तथा हल्के पीले रंग के होते हैं. यह मूल रूप से पूर्वी यूरोप तथा इथियोपिया में पाया जाता था तथा वहां से विश्व के दूसरे भागों मे फैला है. प्राचीन काल से ही इसका उपयोग मेडिटेरेनियन समुद्रतट तथा एशिया के लोगों द्वारा भोजन तथा औषधि के रूप में किया जाता रहा है.
मेथी के विभिन्न नाम:
हिंदी, गुजराती,मराठी व पंजाबी भाषा में इसे मेथी, संस्कृत में मेथिका, कन्नड़ में मेन्तिया, तेलुगु में मेंतुलु,अंग्रेजी में फेनुग्रीक तथा लेटिन में त्रायिगोनेल्ला फोएनम ग्रीकम के नाम से जाना जाता है.
मेथी के गुण अनेक:
यह गरम, कड़वी, हलकी, पौष्टिक - ज्वर, अरुचि,उलटी,कफ,खांसी दूर करने वाली एवं ह्रदय के लिए हितकारी है. इसके बीज भूख बढाने वाले तथा ज्वर तथा कृमिनाशक होते हैं.
प्रकृति का अनुपम उपहार:
मेथी दाना एक सस्ती  और सभी जगह मिलने वाली प्राकृतिक देन है. इसके पत्तों का उपयोग सब्जी बना कर किया जाता है जो बहुत ही पौष्टिक और सुपाच्य होती है. इसके पत्तों को सुखा कर भी इसका प्रयोग किया जाता है.

  • मेथी के लड्डू भी बनाये जाते हैं जो बहुत ही पौष्टिक होते हुए जोड़ों के दर्द, गठिया,कमर व पीठ के दर्द तथा सायटिका के दर्द को दूर करते हैं. इसके साथ ही सर्दी में उभरने वाले रोगों को दूर करते हैं .
  • प्रसव के बाद प्रसूता को मेथी के लड्डूओं  का सेवन कराने से गर्भाशय की शुद्धि होती है.

जोड़ों का दर्द: 

  • २०-३० मेथी के दाने ताजे पानी के साथ सेवन करने से जोड़ों का दर्द, गठिया, सायटिका आदि वात रोगों में लाभ  मिलता है.
  • मेथी के लड्डू भी इन रोगों में फायदा करते हैं.घुटने और शरीर के जोड़ मज़बूत बने रहते हैं तथा बुढापे में होने वाले रोगों में आराम मिलता है. 
  • रोज़ सुबह 5 ग्राम मेथी दाना पानी के साथ लेने से वृद्धावस्था में घुटनों तथा दूसरे जोड़ों के दर्द नहीं होते. 
  • सुबह खाली पेट एक चम्मच मेथी दाना लेने से खून में शर्करा(सुगर) की मात्रा भी कम होती है.

पेट के रोगों में प्रयोग: 

  • मेथी की सब्जी से अपच (indigestion ) और पेट के कई रोगों में आराम मिलता है. 
  • एक छोटी चम्मच मेथी दाना हल्के गरम पानी के साथ लेने से दर्द में फायदा मिलता है. 
  • इसके पत्तों के पकोड़े खाने से पेट की गेस्ट्रिक  समस्याओं में आराम मिलता है. 
  • भूख कम लगाने पर एक चम्मच मेथी दाने को देशी घी में भून कर बारीक पीस लें तथा थोड़ा थोड़ा शहद मिलकर एक महीने तक सेवन करने से लाभ मिलता है.

चोट व सूजन:

  • इसके पत्तों को पीस कर पुल्टिस तैयार कर चोट या सूजे हुए अंग पर बाँध दे, इससे चोट के दर्द एवं सूजन में आराम होगा.

पेट के कीड़े: 

  • बच्चों के पेट में कीड़े हो जाने पर उन्हें १ चम्मच मेथी के पत्तों का रस रोज़ पिलाने से लाभ होगा.

अन्य रोगों में उपयोग: 

  • सुबह खाली पेट एक चम्मच मेथी दाना लेने से खून में शर्करा(सुगर) की मात्रा भी कम होती है.
  • मेथी दाना कब्ज़ ( constipation ) को दूर करता है जिससे कई रोग होने का खतरा रहता है. कब्ज़ के रोगी को रोज़ सुबह शाम एक एक चम्मच मेथी दाना लेना चाहिए. इससे उच्च रक्त चाप, मधुमेह, मानसिक तनाव आदि में फ़ायदा मिलता है.शरीर संतुलित तथा सुडौल रहता है तथा न तो मोटापा चढ़ता है और ना ही कमजोरी रहती है. इसमे विटामिन A प्रचुर मात्रा में होने से आँखों के रोग जैसे रतोंधी आदि दूर होते है.
  • मेथी का साग तथा दाना खाने से खून की कमी दूर होती है क्योंकि इसमे लोहे का तत्व प्रचुर मात्रा में होता है. 
  • इसकी चाय बना कर पीने से पेट की जलन दूर होती है. 
  • मेथी के बीज की रासायनिक बनावट काड लीवर आयल के समान होती है अतः यह शाकाहारियों के लिए मछली के तेल का अच्छा विकल्प है. 
  • इसके प्रयोग से रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्र कम हो जाती है. और उच्च ब्लड प्रेशर भी संतुलित रहता है. 
  • अंकुरित मेथी दाने में कैंसर को नियंत्रित करने वाली विटामिन बी १७ भी विशिष्ट मात्र में पाया जाता है.

मेथी गरम और खुश्क होती है अतः तेज़ गरमी के मौसम में इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए.

Saturday, October 22, 2011

हेल्थ टिप



भारतीय व्यंजनों (दाल, सब्जियों, करी इत्यादि) में उनको  बनाने के बाद हरे धनिये की पत्तियों को बारीक काट कर उससे गार्निश  किया जाता है. उसी प्रकार  अन्य हरी पत्तेदार सब्जियों जैसे मेथी, पालक तथा बथुआ इत्यादि को भी बारीक़ काटकर गार्निश करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है . इससे आपके व्यंजन देखने में सुन्दर तो लगेंगे ही, वे अपने अन्दर हरी पत्तेदार सब्जियों की पौष्टिकता से भी भरपूर  होंगे.

Indian culinary preparations like curries and vegetables etc are garnished with nicely cut green coriander leaves. In the same way nicely cut other green leafy vegetables like fenugreen (Methi), spinach (palak) etc can be used to garnish these preparations. It will not only make them more beautiful but would also make them more nutritious.

Friday, October 21, 2011


Aloe vera - A Wonder Herb
Aloe vera is an easily available herb found almost everywhere, growing naturally in dry and arid sandy areas. It is said to have spread from its original areas of occurrence in South America & Spain. It is understood that it came to India probably during the 16th century. Though there are about 250 species of Aloe worldwide but only about 5 of them are rich in medicinal properties. Out of these - Aloe vera is the most abundantly found species in India.
Different Names:
Aloe is known as Ghritkumari in Sanskrit, Gheekwar or Gwarpatha in Hindi, Kuwarpatha in Gujarati, Lonasera in Kannada, Kumari in Malayali an Aloe vera in Latin.
A Treasure of nutritional substances:
Aloe is a treasure house of nutritional elements being rich in 75 of them- including minerals, amino acids, vitamins, enzymes and different kinds of sugars etc. It contains 19 of the 20 amino acids which are essential for human beings. This is also the only natural source of Vitamin B12.
Uses:
It is probably one of the most widely used herbs in the entire world. It is used in the form of pulp, juice or Gel extracted from its leaves. As it has antibiotic properties, it helps in various diseases & ailment by activating the immune system of the body. Aloe vera is a blood purifier and good for skin diseases.
It reduces blood sugar in diabetics if taken in the form of juice. Its pulp if applied externally, causes early healing of wounds. It not only reduces pain but also heals wounds by activating formation of new skin.
It improves skins health and reduces the aging process by slowing down the wrinkle formation. It does so by fighting the aging related changes as it is an antioxidant. It also helps in improving the skin texture erasing blemishes and dark spots. Due to its numerous advantages its gel is an important ingredient in manufacture of various cosmetic creams, soaps, skin creams & fairness creams etc.
Use of aloe vera gel on burnt wounds not only reduces pain but also helps in early recovery & healing of the wound.
Drinking aloe vera juice mixed with turmeric powder is effective in reducing fever. It also helps in correcting tight motions.
Commercial Production:
Due to its innumerable uses it is being commercially grown in several sates in India like Rajasthan, UP, Madhya Pradesh, Uttaranchal, Haryana, Maharashtra, Gujarat & Andhra Pradesh etc. It is also being used in making of different types of shampoos, moisturisers, antiseptic creams & health drinks etc.

However it is advised that infants and pregnant women should refrain from its use.
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Wednesday, October 19, 2011

विभिन्न रोगों से बचा सकता है पुदीना


औषधियुक्त पौधा है पुदीना

पुदीना भारत में प्रायः सभी जगह पाया जाता है. यह एक सुगन्धित औषधियुक्त पौधा है जो घास की तरह कहीं  भी उगाया जा सकता है. पुदीना एक छोटी  सी  हर्ब है जो नमी वाली भूमि पर आसानी से उगता है इसके फूल सफ़ेद-नीले रंग के होते हैं.
यह पचने में आसान, कफ दूर करने वाला तथा ज्वर, खांसी, जुकाम, त्वचा रोग तथा पेट के कीड़े उलटी आदि रोगों को दूर करने वाला  पौधा है.

विभिन्न नाम:                                 
इसे हिंदी,बंगाली,गुजराती, मराठी,तमिल एवं तेलुगु में पुदीना,कन्नड़ में पुदीना सप्पू,  उड़िया में पोदना के नाम से जाना जाता है. विदेशी भाषाओँ में फ्रेंच में baume vert , जर्मन  में bachmunze ,  सिन्धी में फुदिना तथा सिंघली भाषा में मिंची, इंग्लिश में spearmint तथा लेटिन में Mentha  spicata नाम से जाना जाता है.

पाचन तंत्र में पुदीना:
भोजन के बाद पुदीना की ३-४ पत्तियां खाने से भोजन पचने में आसानी रहती है. इसकी चटनी भी पेट के रोगों में बहुत फायदा देती है. पुदीने के रस में नींबू तथा पानी मिलाकर पीने से गैस के कारण होने वाला दर्द दूर होजाता है तथा इसके अर्क से पेट दर्द, अपच, वायु एवं उलटी आदि में आराम मिलता है.

ज़ुकाम खांसी में उपयोग :
सर्दी, जुकाम तथा  खांसी होने पर पुदीना काली मिर्च, बड़ी इलाइची, नमक और ज़रा सा गुड मिलकर काढ़ा बनाकर पीने से लाभ होता है. अदरख और पुदीने के रस में शहद मिलाकर पीने से सर्दी जुकाम में आराम पहुंचता है.

अन्य रोगों में उपयोग:
गर्मियों में लू लगने और सिरदर्द में पुदीने के प्रयोग से फायदा होता है क्योंकि यह शीतल होता है. पुदीने के रस को अदरक के रस के साथ १-१ चम्मच दिन में दो बार लेने से मलेरिया में आराम मिलता है. घाव पर या ज़हरीले कीड़े के काटने पर पुदीने  के पत्तों का रस लगाने से आराम मिलता है. इसके तेल की खुशबु से मच्छर भाग जाते हैं. इसके पत्तों को चबाने या अर्क को पानी में मिलाकर कुल्ले करने से मुंह  की दुर्गन्ध दूर होती है. चेहरे पर पुदीना का लेप लगाने से गर्मी के कारण होने वाले फोड़े, फुंसियों तथा मुहांसों में आराम मिलता है. इसकी  पत्तियों को सुखाकर उनका पावडर बनाकर भी उपयोग में लाया जा सकता है

Monday, October 17, 2011

आज की हेल्थ टिप

                कांच के बर्तन मे पानी लेकर उसमे तुलसी की कुछ पत्तियां  डालकर धूप मे २ - ३ घंटे रखकर उसे पीने से सर्दी,जुकाम, जोड़ों के दर्द तथा नर्वस सिस्टम के रोगों मे फायदा मिलता है.
            Take drinking water in a glass jar, put few leaves of Tulsi in it and keep in sunlight for 2-3 hours. Drinking this water helps in cold, cough, joint pain and nervous system related ailments.

Sunday, October 16, 2011

TULSI
(Holy Basil)

There was a time when mankind was very close to Mother Nature. It provided him with food and whenever he became ill, he got medicine also from nature. Urban lifestyle of today has driven people away from nature and they are more and more forgetting the importance and utility of most of these plants. One such plant with multiple utility values is Tulsi.

Tulsi is found in almost all the Hindu households in our country and it is worshipped religiously.Its religious importance in Hindu culture can be understood from the fact that it is one of the essential ingredients of prasadam & Charanamruta.

The Plant
It is a small annual plant and there are many verities. However Ram Tulsi (with light green leaves) and Shyam Tulsi (with blackish leaves) are most common verities. Both of them have almost similar properties despite difference in colour.

Different Names
Tulsi is known by different names in different languages- eg. Gauri or Vrinda in Sanskrit, Shree Tulsi in Kannada and Holy Basil in English. It is also known as Ocimum sanctum in Latin. Due to its being supposedly close to Lord Vishnu it is also named as Vishnupriya or Haripriya.

In Indian culture this plant is said to be the abode of all the Gods, therefore one is said to receive the blessings of all of them by worshipping Tulsi. As it possess lots of antibiotic properties, just touching, protecting and watering it helps in bestowing most of its blessings to the person in the form of these properties.

Uses:
All the different parts of the plant like leaves, flowers, roots and bark can be used. As the plant contains antibiotic properties in its different parts, it is generally used to cure or contain contagious & infectious diseases. Because of its antibiotic properties it is said that a Tulsi stand cleans atmosphere to miles around it.
  • It is good for heart and easily digestible. It corrects the deficiencies in blood and helps in curing vomiting, hiccups, epilepsy and fever etc. Taking few leaves of Tulsi daily cures many diseases and is good for the overall health and digestion.
  • 10 leaves of Tulsi, 5 black pepper, 5 almonds if ground with a little honey and taken, help in improving memory.
  • Leaves of Tulsi are specific for many fevers. During rainy season its leaves boiled with tea, act as preventive against various types of fever.
  • Juice of Tulsi and lemon if taken in equal proportion helps in curing headache. Few drops of its juice if applied into nose or rubbed on forehead also cure headache.
  • Sucking 2-3 leaves of Tulsi after meals removes bad odour and is good for teeth and gums& infections.
  • Alkaloids found in Tulsi are helpful in detoxification of skin.
  • Putting few leaves of Tulsi in water helps in purification of water.

Due to its multifarious uses the plant of Tulsi has been accorded a very high and exalted place in Hindu culture. We should plant more and more seedlings of Tulsi and use them daily. As Tulsi contains natural Mercury, which may be harmful to teeth if leaves are chewed, therefore it is suggested that leaves should be swallowed with water and not chewed.

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Thursday, October 13, 2011

संक्रामक रोगों मे रामबाण है तुलसी



हमारे देश मे सभी हिन्दुओं के घरों मे तुलसी के पौधे पाए जाते हैं तथा बड़ी श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती है. इसकी कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं. लेकिन दो मुख्य हैं, सफेद तुलसी - राम तुलसी तथा काली तुलसी या श्याम तुलसी. दोनों के रंग मे अंतर होता है लेकिन गुण एक जैसे ही होते हैं.
तुलसी को अलग अलग भाषाओँ मे अलग अलग नामों से जाना जाता है. जैसे संस्कृत में गौरी, सुलभा या वृंदा, कन्नड़ में श्रीतुलसी, अंग्रेजी में होली बेसिल इत्यादि. लैटिन भाषा में इसे औसिमम सेंक्ट्म (Ocimum sanctum ) का नाम दिया गया है. भगवान विष्णु को प्रिय होने के कारण तुलसी को हरिप्रिया तथा विष्णुप्रिया भी कहा गया है. भारतीय संस्कृति में तुलसी में समस्त देवताओं का निवास बताया गया है. अतः जो लोग उसकी पूजा करते हैं उन्हें अनायास ही सभी देवताओं की पूजा का लाभ मिल जाता है, ऐसा कहा गया है. तुलसी एक परम रोगाणुनाशक पौधा है जिसे लगाने व रक्षा करने, पानी देने, छूने तथा देखने मात्र से वाणी, मन व काया के समस्त दोष दूर होते हैं. हिन्दू संस्कृति मे इसके धार्मिक महत्व को इसी से समझा जा सकता है की पूजा के  जल तथा  भगवान  के  प्रसाद ( चरणामृत) बनाने में तुलसी का उपयोग अनिवार्य है.
तुलसी के प्रयोग
तुलसी के पते, फूल, फल, जड़, छाल, तथा तना इत्यादि सभी पवित्र सेवनीय हैं. इसके हर हिस्से मे रोगाणुनाशक गुण होने से संक्रामक रोगों मे इनका अधिकतम प्रयोग किया जाता है. इन गुणों के कारण ही कहा जाता है कि जहाँ तुलसी का जंगल होता है वहां आसपास कोसों दूर तक वायुमंडल भी शुद्ध रहता है.
अनगिनत फायदे
तुलसी के अनगिनत फायदों के कारण ही इसे हिन्दू धर्म मे अत्यंत उच्च स्थान दिया गया है. हमे अधिक संख्या मे इसके पौधों का रोपण तथा इसका सेवन करना चाहिए. इसके पतों को पानी से ही निगलना चाहिए. क्योंकि इनमें प्राकृतिक रूप से पारा होने के कारण दांतों को नुकसान पहुँच सकता है.
पांव के अंगूठे से सिर तक निर्मल
यह वाणी (मुख, गला,दांत,मसूड़े व् फेफड़े) मन (ह्रदय,दिमाग,व नर्वस सिस्टम) और काया (पांव के अंगूठे से सिर तक) को निरोग व निर्मल कर देती है. इसीलिए इसे अमृत माना गया है. तुलसी के पतों का रस तथा नीबू का रस समान मात्रा मे लेने से सिर दर्द दूर होता है. इसके रस को कनपटी पर मलने से भी सरदर्द मे आराम मिलता है. भोजन के बाद २-२ तुलसी के पते मुंह मे रखकर चूसने से मुंह की दुर्गन्ध दूर होती है तथा दांतों व मसूड़ों के विकार मिटते हैं. दूषित पानी मे इसकी कुछ ताज़ी पतियाँ डालने से पानी का शुद्दिकरण भी किया जा सकता है.
पाचन व् स्मरण शक्ति बढाए
तुलसी ह्रदय के लिए हितकारी, पचने मे हल्की,कफ तथा वात को दूर करने वाली, रक्त विकार, उल्टी, हिचकी, पेट के कीड़े, मिर्गी तथा बुखार को दूर करने वाली है. इसकी ६-७ पत्तियों का प्रतिदिन सेवन करने से बहुत से रोग दूर होते हैं तथा बुद्धि,बल, स्फूर्ति और स्वस्थ्य अच्छा बना रहता है तथा पाचन शक्ति भी अच्छी रहती है. इसके दस पत्ते पांच काली मिर्च, पांच बादाम तथा थोडा सा शहद मिलकर ठंडाई की तरह पीने से स्मरण शक्ति बढती है.



प्रकृति ने हमें जो अद्भुत जड़ी बूटियाँ दी हैं , उनके सही इस्तेमाल से हम स्वस्थ जीवन जी सकते हैं. इन्ही सब विषयों पर लिखने का प्रयास है. उम्मीद है कि आप सभी इसे पसंद करेंगे तथा लाभ उठा सकेंगे. इन विषयों पर समाचारपत्रों में भी लिखती रही हूँ उन्हें भी इस ब्लॉग के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की यह एक कोशिश है.