बेल का पेड़ सारे भारत में पाया जाता है. यह पहाड़ों पर भी देखने को मिलता है तथा खासतौर पर सूखी पहाड़ियों पर भी उगता है. इसके प्रत्येक पत्ते में शिव जी के त्रिशूल की भांति ३ छोटी पत्तियां होती हैं. तथा फल गोल तथा पत्थर की भांति कडा होता है किन्तु फल का गूदा बड़ा ही स्वादिष्ट तथा मीठा होता है. इसे खासतौर पर गर्मी के मौसम में शरबत के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसके गूदे में हमारे शरीर के लिए आवश्यक शर्करा, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फोस्फोरस तथा लौह आदि तत्व पाए जाते हैं जिनमे फोस्फोरस विशेष रूप से हमारे मस्तिष्क की चेतना के लिए आवश्यक है.
इसके पेड़ को अत्यंत पवित्र माना जाता है तथा इसमे देवताओं के समान गुण पाए जाते हैं. इसके पत्तों को भक्त लोग बड़ी श्रद्धा से भगवान शिव पर चढाते हैं.
इसके विभिन्न नाम :
इसे हिंदी में बेल, संस्कृत में बिल्व, गुजराती में बीली, कन्नड़ में बिल्व पत्र, तमिल में बिल्वं तथा लेटिन में Aegle marmelos के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा इसे शांडिल्य भी कहते हैं जिसका अर्थ है पीड़ा दूर करने वाला.
इसके फूल पत्ते, छाल तथा जड़ का प्रयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है तथा यह छोटे बच्चों से लेकर बड़े बूढों तक के लिए महा औषधि है.
पेट के रोगों में बेल:
*अपच, भूख न लगना, पेट में जलन, अजीर्ण कब्ज़, उल्टी तथा गैस की शिकायत होने पर बेल का शरबत बना कर उसमे काला नमक, इलायची, जीरा तथा दालचीनी चुटकी भर डाल कर प्रयोग करें.
* बेल के गूदे में सेंधा नमक, ज़रा सी हींग तथा ३ दाने काली मिर्च मिलाकर सेवन करने से भी अपच आदि में लाभ होता है.
* बेल का मुरब्बा कब्ज़ तथा पेचिश में बहुत लाभदायक होता है.
स्नायु सम्बन्धी रोगों में बेल:
* गर्मी के मौसम में बाहर निकलने से पहले बेल का शरबत पीने से गर्मी तथा लू से होने वाले रोगों से बचा जा सकता है.
* सर दर्द और चक्कर आने पर भी बेल का शरबत फायदा पहुंचाता है.
अनिद्रा में बेल का प्रयोग:
* नींद न आने पर पानी में सौंफ को भिगो कर तथा छानकर इस पानी को बेल के शरबत में मिलाकर पीने से लाभ होता है.
* यह स्मरण शक्ति भी बढाता है तथा अनिद्रा को दूर करता है.
अन्य रोगों में बेल का प्रयोग:
* बेल के शरबत में आधी चम्मच पिसी हल्दी मिलाकर पीने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं.
* इसके पत्तों का रस मधुमेह (diabetes) में रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है.
* ज़ुकाम तथा इसके कारण आने वाले हलके बुखार में इसके फलों का ताज़ा रस ह्रदय तथा मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है.
*बेल का शरबत पीते रहने से पेट में विकार नहीं बनते तथा इसके बहुत से गुणों के कारण इसे अमृत फल भी कहा गया है.
इसके पेड़ को अत्यंत पवित्र माना जाता है तथा इसमे देवताओं के समान गुण पाए जाते हैं. इसके पत्तों को भक्त लोग बड़ी श्रद्धा से भगवान शिव पर चढाते हैं.
इसके विभिन्न नाम :
इसे हिंदी में बेल, संस्कृत में बिल्व, गुजराती में बीली, कन्नड़ में बिल्व पत्र, तमिल में बिल्वं तथा लेटिन में Aegle marmelos के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा इसे शांडिल्य भी कहते हैं जिसका अर्थ है पीड़ा दूर करने वाला.
इसके फूल पत्ते, छाल तथा जड़ का प्रयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है तथा यह छोटे बच्चों से लेकर बड़े बूढों तक के लिए महा औषधि है.
पेट के रोगों में बेल:
*अपच, भूख न लगना, पेट में जलन, अजीर्ण कब्ज़, उल्टी तथा गैस की शिकायत होने पर बेल का शरबत बना कर उसमे काला नमक, इलायची, जीरा तथा दालचीनी चुटकी भर डाल कर प्रयोग करें.
* बेल के गूदे में सेंधा नमक, ज़रा सी हींग तथा ३ दाने काली मिर्च मिलाकर सेवन करने से भी अपच आदि में लाभ होता है.
* बेल का मुरब्बा कब्ज़ तथा पेचिश में बहुत लाभदायक होता है.
स्नायु सम्बन्धी रोगों में बेल:
* गर्मी के मौसम में बाहर निकलने से पहले बेल का शरबत पीने से गर्मी तथा लू से होने वाले रोगों से बचा जा सकता है.
* सर दर्द और चक्कर आने पर भी बेल का शरबत फायदा पहुंचाता है.
अनिद्रा में बेल का प्रयोग:
* नींद न आने पर पानी में सौंफ को भिगो कर तथा छानकर इस पानी को बेल के शरबत में मिलाकर पीने से लाभ होता है.
* यह स्मरण शक्ति भी बढाता है तथा अनिद्रा को दूर करता है.
अन्य रोगों में बेल का प्रयोग:
* बेल के शरबत में आधी चम्मच पिसी हल्दी मिलाकर पीने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं.
* इसके पत्तों का रस मधुमेह (diabetes) में रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है.
* ज़ुकाम तथा इसके कारण आने वाले हलके बुखार में इसके फलों का ताज़ा रस ह्रदय तथा मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है.
*बेल का शरबत पीते रहने से पेट में विकार नहीं बनते तथा इसके बहुत से गुणों के कारण इसे अमृत फल भी कहा गया है.
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