ब्राह्मी भारतवर्ष
में जलाशयों तथा नदी के किनारों पर एवं नम स्थानों पर ज़मीं पर फैलने वाली
बहुवर्षीय लता है जिसके पत्ते छोटे, गोल तथा गुर्दे के आकार के होते हैं. यह
उत्तर भारत में गंगा के किनारे तथा विशेष रूप से हरिद्वार से बद्रीनाथ के मार्ग
में अधिक मात्रा में मिलती है. बुद्धिवर्धक होने के कारण इसे यह नाम दिया गया है.
विभिन्न नाम: इस वनस्पति को संस्कृत
में मंदुकपरनी, तमिल में
वल्लरी तथा उर्दू में बरह्मी, बंगाली में पोटरी, गुजराती में
बरमी, कन्नडा में ओंदेलेगा तथा मराठी में ब्राह्मी के नाम से जाना जाता है. इसका लातिन भाषा
में वानस्पतिक नाम Centella asiatica है.
ताज़ी हरी पत्तियों में एक तैलीय पदार्थ वलेरीन होने के कारण एक ख़ास सुगंध
होती है, जो सूखने पर
गायब हो जाती है.
उपयोग:
- यह बहुपयोगी नर्व
टॉनिक है जो मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है . इसके प्रयोग से एकाग्रता बढ़ती है अतः इसकी
मुख्य क्रिया मस्तिष्क, ह्रदय तथा
स्नायुविक संस्थान पर होती है. यह कमज़ोर स्मरण शक्ति वालों तथा दिमागी काम
करने वालों के लिए विशेष लाभकारी है.
- ब्राह्मी का पावडर
अल्प मात्रा में (२ ग्राम) दूध में मिलाकर छानकर लेने से अनिद्रा
के रोग में फायदा होता है.
- ब्राह्मी का शरबत
उन्माद रोग में लाभकारी होता है तथा गर्मियों में दिमाग को ठंडक प्रदान करता
है.
- शहद के साथ इसके
पत्तों का रस प्रयोग करने से उच्च रक्तचाप में लाभ मिलता है.
- बच्चों में दस्त
लगने
पर तीन अथवा चार
पत्तियां जीरा तथा चीनी के साथ मिलाकर देने से तथा इसके पेस्ट को नाभि के
चारों ओर लगाने से आराम मिलता है.
- त्वचा सम्बन्धी
विकारों जैसे एक्जीमा तथा फोड़े फुंसियों पर इसकी पत्तियों के चूर्ण को लगाने
से फायदा होता है.
- हाथीपाँव की शिकायत में सूजे हुए अंग पर इस पौधे के
तने तथा पत्तियों का रस लगाने से सूजन कम करने में मदद मिलती है.
- चटनी बनाते समय
ब्राह्मी के कुछ पत्ते चटनी में डाल कर इसका लाभ उठाया जा सकता है.
बाज़ार में ब्राह्मी का पावडर व गोलियां मिलती हैं जिन्हें चिकित्सक
की सलाह पर प्रयोग किया जा सकता है. इसके अधिक
मात्रा में प्रयोग से कभी कभी त्वचा में खुजली तथा लालिमा हो सकती है अतः इसका कम
मात्रा में ही प्रयोग करना उचित है.